Category Archives: पंडित लेखराम

पठित पाठ की आवृत्तियाँ उपावृत्तियाँ-रामनाथ विद्यालंकार

पठित पाठ की आवृत्तियाँ उपावृत्तियाँ-रामनाथ विद्यालंकार 

ऋषिः वत्सप्री: । देवता अग्निः । छन्दः आर्षी त्रिष्टुप् ।

अग्नेऽअङ्गिरः शतं ते सन्त्ववृतेः सहस्त्रे तऽउपवृतः अध पोषस्य पोषे पुनर्नो नष्टमाकृधि पुनर्नो रयिमाकृधि॥

-यजु० १२।८

हे ( अङ्गिरः अग्ने ) विद्यारसयुक्त अध्यापक! ( शतं ) एक-सौ ( ते सन्तु ) तेरी हों (आवृतः ) आवृत्तियाँ। ( सहस्त्रं ) एक सहस्र हों ( ते ) तेरी ( उपावृतः ) उपावृत्तियाँ। यदि पाठ विस्मृत ही हो गया है, आवृत्ति से काम नहीं चलता, तब (नः ) हमारे ( नष्टं ) नष्ट या विस्मृत पाठ को ( पोषस्य पोषेण ) परिपुष्ट अध्यापक के पोषण से (पुनःआकृधि ) पुनः मन में बैठा दो। ( पुनः ) फिर ( नः ) हमारी ( रयिं ) विद्या-लक्ष्मी को ( आकृधि) उत्पन्न कर दो।।

शिक्षणालयों में विद्या ग्रहण करनेवाले विद्यार्थियों का योग्यता के कई कारण होते हैं, जिनमें अध्यापक की अध्यापन रीति एक प्रमुख कारण है। एक शिक्षाशास्त्री का कथन है कि * आचार्य समाहित होकर छात्रों को ऐसी रीति से विद्या और सुशिक्षा करे कि जिससे उनके आत्मा के भीतर सुनिश्चित अर्थ होकर उत्साह ही बढ़ता जाये। दृष्टान्त, हस्तक्रिया, यन्त्र, कलाकौशल, विचार आदि से विद्यार्थियों के आत्मा में पदार्थ इस प्रकार साक्षात् करावे कि एक के जानने से हजारों पदार्थ यथावत् जानते जायें ।

प्रस्तुत मन्त्र में अध्यापक को ‘अग्नि’ कहा गया है। अग्नि शब्द उणादि कोष में गत्यर्थक ‘अगि’ धातु से ‘नि’ प्रत्यय करके निष्पन्न किया गया है। इससे अध्यापक के क्रियाशीलता, तत्परता, ज्ञानप्रकाशयुक्तता, अध्यापन-कुशलता  आदि गुण सूचित होते हैं। यहाँ अध्यापक को एक विशेषण ‘अङ्गिरस्’ है। उणादि में अङ्ग से असि प्रत्यय तथा इरुङ् का आगम करके यह शब्द निपातित किया गया है, जिससे अध्यापक का विद्याङ्गसमय होना सूचित होता है। तात्पर्य यह है कि अध्यापक को अखिल वेदवेदाङ्गों का तथा ज्ञान-विज्ञान के भण्डार का स्वामी होना चाहिए। मन्त्र में अध्यापक द्वारा शिष्यों को पढ़ाये हुए पाठ की आवृत्तियाँ और उपावृत्तियाँ कराने पर विशेष बल दिया गया है। वह शिष्यों को एक-सौ आवृत्तियाँ तथा एक-सहस्र उपावृत्तियाँ कराये। आवृत्ति से तात्पर्य है, उस पाठ की अक्षरशः पूर्ण आवृत्ति अर्थात् उस पाठ को पूरा दोहराना। उपावृत्ति का अभिप्राय है, उस पाठ पर सामान्य दृष्टि डालना। प्रतिदिन एक आवृत्ति की जाए, तौ एक-सौ आवृत्तियों में तीन मास दस दिन लगेंगे। एक सहस्र उपावृत्तियों में २ वर्ष ९ मास १० दिन। यह अनुभव से देखा गया है कि किन्हीं श्लोकों, मन्त्रों आदियों का प्रतिदिन पाठमात्र कर लेने पर, स्मरण करलेने के लिए मस्तिष्क पर कोई बल न देने पर भी वे तीन-चार मास में स्मरण या कण्ठस्थ हो जाते हैं। उसके बाद अक्षरशः न देख कर सामान्य दृष्टि-निक्षेप से ही काम चल जाता है।

उत्तरार्ध में मन्त्र कहता है कि यदि कोई पाठ पूर्णतः लुप्त (नष्ट) हो जाए, उसके सब ग्रन्थ जलविप्लव या अग्नि आदि से विनष्ट हो जाएँ तो भी सुयोग्य विद्वान् पुनः उस विद्या का अनुसन्धान या आविष्कार कर सकते हैं। इस प्रकार खोई हुई लक्ष्मी को पुनः प्राप्त करा सकते हैं। यहाँ यदि ‘नष्ट’ का अर्थ पूर्णतः विस्मृत लें, तो कुशल अध्यापक पुनः उसे शिष्य के मस्तिष्क में बैठा सकता है, यह भाव लेना चाहिए।

पादटिप्पणियाँ

१. स्वामी दयानन्द सरस्वती, ऋ० भा० १.४.४, भावार्थ ।।

२. अङ्गेर्नलोपश्च उ० ४.५१, अगि- नि, अङ्ग नि, अग्-नि=अग्नि।

३. अङ्ग- असि प्रत्यय, इरुङ्-इर् का आगम। अङ्गिरा: उ० ४.२३७।

४. अङ्गिराः विद्यारसयुक्तः-द० । अङ्ग-रस=अङ्गिरस्।

पठित पाठ की आवृत्तियाँ उपावृत्तियाँ-रामनाथ विद्यालंकार

चाँदापुर शास्त्रार्थ का भय-भूत: – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’

चाँदापुर शास्त्रार्थ का भय-भूत:- एक आर्य भाई ने यह जानकारी दी है कि आपने ऋषि-जीवन की चर्चा करते हुए पं. लेखराम जी के अमर-ग्रन्थ के आधार पर चाँदापुर शास्त्रार्थ की यह घटना क्या दे दी कि शास्त्रार्थ से पूर्व कुछ मौलवी ऋषि के पास यह फरियाद लेकर आये कि हिन्दू-मुसलमान मिलकर शास्त्रार्थ में ईसाई पादरियों से टक्कर लें। आप द्वारा उद्धृत प्रमाण तो एक सज्जन के लिये भय का भूत बन चुका है। न जाने वह कितने पत्रों में अपनी निब घिसा चुका है। अब फिर आर्यजगत् साप्ताहिक में वही राग-अलापा है। महाशय चिरञ्जीलाल प्रेम जैसे सम्पादक अब कहाँ? कुछ भी लिख दो। सब चलता है। इन्हें कौन समझावे कि आप पं. लेखराम जी और स्वामी श्रद्धानन्द जी के सामने बौने हो। कुछ सीखो, समझो व पढ़ो।

मेरा निवेदन है कि इनको अपनी चाल चलने दो। आपके लिये एक और प्रमाण दिया जाता है। कभी बाबा छज्जूसिंह जी का ग्रन्थ ‘लाइफ एण्ड टीचिंग ऑफ स्वामी दयानन्द’ अत्यन्त लोकप्रिय था। इस पुस्तक के सन् १९७१ के संस्करण में डॉ. भवानीलाल जी भारतीय ने इसका गुणगान किया था। जो प्रमाण पं. लेखराम जी का मैंने दिया है, उसी चाँदापुर शास्त्रार्थ उर्दू को बाबा छज्जूसिंह जी ने अपने ग्रन्थ में उद्धृत किया है। पं. लेखराम जी को झुठलाने के लिये नये कुतर्क गढक़र कोई कुछ भी लिख दे, इन्हें कौन रोक सकता है। सूर्य निकलने पर आँखें मीचकर सूर्य की सत्ता से इनकार करने वाले को क्या कह सकते हैं। अब भारतीय जी को क्या कहते हैं? यह देख लेना।

पण्डित लेखराम ने कहाँ लिखा है? :राजेन्द्र जिज्ञासु

पण्डित लेखराम ने कहाँ लिखा है?

एक बन्धु ने पूछा है- क्या पुस्तक मेले में आपसे किसी ने चाँदापुर शास्त्रार्थ विषय में पण्डित लेखराम का प्रमाण माँगा? मैंने निवेदन किया कि बौद्धिक व्यायाम करके प्रसिद्धि पाना और बात है, सामने आकर शंका निवारण करवाना, गभीरता से सत्य को जानना दूसरी बात है। कोई पूछता तो मैं बता देता कि पं. लेखराम जी की ‘तकजीबे बुराहीन अहमदिया’ के आरभिक पृष्ठों पर ही मेरे कथन की पुष्टि में स्पष्ट शदों में लिखा पैरा मिलेगा। माता भगवती जब ऋषि जी से मुबई में मिली थी, तब वह 38 वर्ष की थी। यह कृपालु तो उसे ‘लड़की’ बनाये बैठे हैं। इन्होंने सनातनी विद्वान् पं. गंगाप्रसाद का ऋषि महिमा में लिखा अवतरण, हजूर जी महाराज लिाित ऋषि-जीवन, निन्दक जीयालाल लिखित ऋषि का गुणगान और मिर्जा कादियानी द्वारा महर्षि की हत्या या बलिदान के प्रमाण तो न जाने और न उनका लाभ उठाया। उनको एक काम मिला है, करने दीजिये।

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

हत्यारा मनुष्य था फ़रिश्ता नहीं :- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

१. मिर्ज़ा तथा मिर्जाई  पण्डित जी के हत्यारे को खुदा का भेजा फ़रिश्ता बताते व लिखते  चले आ रहे हैं .
कितना भी झूठ गढ़ते  जाओ , सच्चाई सौ पर्दे फाड़ कर बाहर  आ जाती है . मिर्जा  ने स्वयं  स्वीकार किया है . वह उसे एक शख्स ( मनुष्य ) लिखता है . उसने पण्डित लेखराम के पेट में तीखी छुरी मारी . छुरी मार कर वह मनुष्य लुप्त हो गया  पकड़ा नहीं गया

२. वह हत्यारा मनुष्य बहुत समय पण्डित लेखराम के साथ रहा . यहाँ बार बार उसे मनुष्य लिखा गया है . फ़रिश्ता नहीं . झूठ की पोल अपने आप खुल गयी
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २३९ प्रथम संस्करण

हत्यारा मनुष्य ही था :- मिर्जा पुनः लिखता है ” मैं उस मकान की ओर चला जा रहा हूँ . मेने एक व्यक्ति को आते हुए देखा जो कि एक सिख सरीखा प्रतीत होता था ” कुछ ऐसा दिखाई देता था जिस प्रकार मेने लेखराम के समय एक मनुष्य को स्वप्न में देखता था .
– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – ४४०  प्रथम संस्करण

यहाँ  फ़रिश्ते को सिख, अकालिया, सरीखा आदि तथा डरावना बताकर सीखो को तिरस्कृत किया साथ ही वह भी बता दिया की कादियानी अल्लाह के फ़रिश्ते शांति दूत नहीं क्रूर डरावने व हत्यारे  होते हैं . झूठ की फिर पोल खुल गयी .

अल्लाह का फ़ारसी पद्य पढ़िए :-

मिर्जा ने अपने एक लम्बी फ़ारसी कविता में पण्डित जी को हत्या की धमकी दते हुए अल्लाह मियां रचित निम्न पद्य दिया है :-

अला अय दुश्मने नादानों बेराह

बतरस अज तेगे बुर्राने मुहम्मद

– दृष्टव्य – हकीकत उल वही  पृष्ठ – २८८   तृतीय  संस्करण

अर्थात अय मुर्ख भटके हुए शत्रु तू मुहम्मद की तेज काटने वाले तलवार से डर

प्रबुद्ध, सत्यान्वेषी और निष्पक्ष पाठक ध्यान दें की अल्लाह ने तलवार से काटने की धमकी दी थी परन्तु मिर्जा ने स्वयं स्वीकार किया है की पण्डित लेखराम जी की हत्या तीखी छुरी से की गयी . मिर्ज़ा झूठा नहीं सच्चा होगा परन्तु मिर्ज़ा का कादियानी अलाल्ह जनाब मिर्ज़ा की साक्षी से झूठा सिद्ध हो गया . इसमें हमारा क्या दोष

न छुरी , न तलवार प्रत्युत नेजा ( भाला )

मिर्ज़ा लिखता है ” एक बार मेने इसी लेखराम के बारे में देखा कि एक नेजा ( भाला ) हा ई . उसका फल बड़ा चमकता है और लेखराम का सर पड़ा हुआ है उसे नेजे से पिरो दिया है और खा है की फिर यह कादियां में न आवेगा . उन दिनों लेखराम कादियां में था और उसकी हत्या से एक मॉस पहले की घटना है

 

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २८७   प्रथम संस्करण

 

यह इलहाम एक शुद्ध झूठ सिद्ध हुआ . पण्डित लेखराम जी का सर कभी भाले पर पिरोया गया हो इसकी पुष्टि आज तक किसी ने नहीं की .मिर्ज़ा ने स्वयं पण्डित जी के देह त्याग के समय का उनका चित्र छापा है मिर्जा के उपरोक्त कथन की पोल वह चित्र तथा मिर्जाई लेखकों के सैकड़ों लेख खोल रहे हैं

अपने बलिदान से पूर्व पण्डित जी ने कादियां पर तीसरी बार चढाई की मिर्ज़ा को  पण्डित जी का सामना करने की हिम्मत न हो सकी . मिर्जा को सपने में भी पण्डित लेखराम का भय सततता था उनकी मन स्तिथि का ज्वलंत प्रमाण उनका यह इलहामी कथन है :

झूठ ही झूठ :- मिर्जा का यह कथन भी तो एक शुध्ध झूठ है की पण्डित जी अपनी हत्या से एक मॉस पूर्व कादियां पधारे थे . यह घटना जनवरी की मास  की है जब पण्डित जी भागोवाल आये थे . स्वामी श्रद्धानन्द  जी ने तथा  इस विनीत ने अपने ग्रंथो में भागोवाल की घटना दी है . न जाने झूठ बोलने में मिर्जा को क्या स्वाद आता है .

तत्कालीन पत्रों में भी यही प्रमाणित होता है की पूज्य पण्डित जी १७-१८ जनवरी को भागोवाल पधारे सो कादियां `१९-२० जनवरी को आये होंगे . उनका बलिदान ६ मार्च को हुआ . विचारशील पाठक आप निर्णय कर लें की यह डेढ़ मास  पहले की घटना है अथवा एक मास पहले की . अल्पज्ञ जेव तो विस्मृति का शिकार हो सकता है . क्या सर्वज्ञ अल्लाह को भी विस्मृति रोग सताता है ?

अल्लाह का डाकिया कादियानी  नबी :-

मिर्जा ने मौलवियों का, पादरियों का , सिखों का , हिन्दुओं का सबका अपमान किया . सबके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया तभी तो “खालसा ” अखबार के सम्पादक सरदार राजेन्द्र सिंह जी ने मिर्जा की पुस्तक को ” गलियों की लुगात ” ( अपशब्दों का शब्दकोष ) लिखा है . दुःख तो इस बात का है की मिर्ज़ा बात बार पर अल्लाह का निरादर व अवमूल्यन करने से नहीं चूका . मिर्जा ने लिखा है मेने एक डरावने व्यक्ति को देखा . इसको भी फ़रिश्ता ही बताया है – ” उसने मुझसे पूछा कि लेखराम कहाँ है ? और एक और व्यक्ति का नाम लिया की वह कहा है ?

– दृष्टव्य – तजकरा पृष्ठ – २२५   प्रथम संस्करण

पाठकवृन्द ! क्या  यह सर्वज्ञ अल्लाह का घोर अपमान नहीं की वह कादियां फ़रिश्ते को भेजकर अपने पोस्टमैन मिर्ज़ा गुलाम अहमद से पण्डित लेखराम तथा एक दूसरे व्यक्ति ( स्वामी श्रद्धानन्द ) का अता पता पूछता है . खुदा के पास फरिश्तों की क्या कमी पड़  गयी है ? खुदा तो मिर्ज़ा पर पूरा पूरा निर्भर हो गया . उसकी सर्वज्ञता पर मिर्जा ने प्रश्न चिन्ह लगा दिया .

एक और झूठ गढ़ा गया : – ऐसा लगता है कि कादियां में नबी ने झूठ गढ़ने की फैक्ट्री लगा दी . यह फैक्ट्री ने झूठ गढ़ गढ़ कर सप्लाई करती थी पाठक पीछे नबी के भिन्न भिन्न प्रमाणों से यह पढ़ चुके हैं कि पण्डित जी की हत्या :
१. छुरी से की गयी

२. हत्या तलवार से की गए

३. हाथ भाले से की गयी

नबी के पुत्र और दूसरे खलीफा बशीर महमूद यह लिखते हैं :-

४. घातक ने पण्डित जी पर खंजर से वर किया
देखिये – “दावतुल अमीर ” लेखक मिर्जा महमूद पृष्ठ – २२०

अब पाठक इन चरों कथनों के मिलान कर देख लें की इनमें सच कितना है और झूठ कितना . म्यू हस्पताल के सर्जन डॉ. पेरी को प्रमाण मानते ही प्रत्येक बुद्धिमानi यह कहेगा कि बाप बेटे के कथनों में ७५ % झूठ है .

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी की शालीनता

मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी  और  उसकी उम्मत  लगातार ये कहती  आयी है कि  पण्डित लेखराम की वाणी अत्यन्त तेज  व  असभ्य थी . मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  और  न ही उसके चेले  आज तक  इस  सन्दर्भ में कोई  प्रमाण प्रस्तुत  कर पाए हैं . इसके विपरीत मिर्ज़ा  गुलाम अहमद स्वयम कहता है कि पण्डित लेखराम  सरल  स्वाभाव  के थे :

‘ वह अत्यधिक  जोश के होते हुए भी अपने स्वभाव से सरल था ”
सन्दर्भ- हकीकुत उल वही पृष्ट  -२८९ ( धर्मवीर पण्डित लेखराम – प्र राजेन्द्र जिज्ञासु)

मिर्ज़ा गुलाम अहमद और उनके चेले तो धर्मवीर पण्डित लेखराम जी के वो शब्द तो न दिखा सके न ही दिखा सकते हैं क्योंकि झूठ के पांव नहीं होते .

आइये आपको मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा की शालीनता के कुछ नमूने उनकी ही किताबों से देते हैं :

 

रंडियों की औलाद  

” मेरी इन किताबों को हर मुसलमान  मुहब्बत  की नजर से देखता है और उसके इल्म से फायदा उठाता है और मेरी अरु मेरी दावत के हक़ होने की गवाही देता है और इसे काबुल करता है .

किन्तु रंडियों (व्यभिचारिणी औरतों ) की औलादें मेरे हक़ होने  की गवाही नहीं देती ”

– आइन इ कमालाते  इस्लाम पृष्ट -५४८ लेखक – मिर्जा गुलाम अहमद प्रकाशित सब १८९३ ई

 

हरामजादे

” जो हमारी जीत का कायल नहीं होगा , समझा जायेगा कि उसको हरामी (अवैध संतान ) बनने का शौक हिया और हलालजादा (वैध संतान ) नहीं है .”

– अनवारे इस्लाम पृष्ट -३० , लेखक – मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी प्रकाशित – सन १८९४ ई

मर्द सूअर  और औरतें  कुतियाँ

” मेरे  विरोधी जंगलों के सूअर हो गए और उनकी  औरतें  कुतियों से बढ़ गयीं ”

– जज्जुल हुदा पृष्ठ – १० लेखक  मिर्ज़ा  गुलाम अहमद  कादियानी प्रकाशित – १९०८ ई

जहन्नमी

मिर्ज़ा जी बयान करते हैं :

‘ जो व्यक्ति मेरी पैरवी नहीं करेगा और मेरी जमाअत में दाखिल नहें होगा वह खुदा और रसूल की नाफ़रमानी करने वाला है जहन्नमी है ”

– तबलीग रिसालत पृष्ट – २७ , भाग – ९

मौलाना मुहम्मद अब्दुर्रउफ़ “कादियानियत की हकीकत” में लिखते हैं कि मानो कि तमाम मुसलमान जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद के हक़ होने की गवाही न तो वह जहन्नमी और हरामजादे , जंगल के सूअर और रण्डियों की औलादें हैं और मुसलमान औरतें हरामजादियां रंडियां (वैश्याएँ) और जंगल की कुतियाँ और जहन्नमी हैं

– पृष्ट -५४, प्रकाशन – २०१०

 

मिर्ज़ा गुलाम अहमद की भाषा शैली किस स्तर तक गिरी हुयी थी ये उसके चुनिन्दा नमूने हैं अन्यथा भाषा की स्तर इस कदर गिरा हुआ है कि हम उसे पटल पर रखना ठीक नहीं समझते .

समझदारों के लिए इशारा ही काफी है .

 

Pandit Lekhram gave Mirza Ghulam Ahmad a very hard time for a number of years. He would respond to the latter’s challenges, and would show up to meet him, and also wrote in an equally tough, though more civil tone, but nevertheless very sarcastic.  Here references are given of sarcastic & unplished tone of Mirza Ghulam Ahamd

 

 

देखें तो पण्डित लेखराम को क्या  हुआ? प्रा राजेंद्र जिज्ञासु

 

पण्डितजी के बलिदान से कुछ समय पहले की घटना है।

पण्डितजी वज़ीराबाद (पश्चिमी पंजाब) के आर्यसमाज के उत्सव

पर गये। महात्मा मुंशीराम भी वहाँ गये। उन्हीं दिनों मिर्ज़ाई मत के

मौलवी नूरुद्दीन ने भी वहाँ आर्यसमाज के विरुद्ध बहुत भड़ास

निकाली। यह मिर्ज़ाई लोगों की निश्चित नीति रही है। अब पाकिस्तान

में अपने बोये हुए बीज के फल को चख रहे हैं। यही मौलवी

साहिब मिर्ज़ाई मत के प्रथम खलीफ़ा बने थे।

पण्डित लेखरामजी ने ईश्वर के एकत्व व ईशोपासना पर एक

ऐसा प्रभावशाली व्याख्यान  दिया कि मुसलमान भी वाह-वाह कह

उठे और इस व्याख्यान को सुनकर उन्हें मिर्ज़ाइयों से घृणा हो गई।

पण्डितजी भोजन करके समाज-मन्दिर लौट रहे थे कि बाजार

में एक मिर्ज़ाई से बातचीत करने लग गये। मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद

अब तक कईं बार पण्डितजी को मौत की धमकियाँ दे चुका था।

बाज़ार में कई मुसलमान इकट्ठे हो गये। मिर्ज़ाई ने मुसलमानों को

एक बार फिर भड़ाकाने में सफलता पा ली। आर्यलोग चिन्तित

होकर महात्मा मुंशीरामजी के पास आये। वे स्वयं बाज़ार

गये, जाकर देखा कि पण्डित लेखरामजी की ज्ञान-प्रसूता, रसभरी

ओजस्वी वाणी को सुनकर सब मुसलमान भाई शान्त खड़े हैं।

पण्डितजी उन्हें ईश्वर की एकता, ईश्वर के स्वरूप और ईश की

उपासना पर विचार देकर ‘शिरक’ के गढ़े से निकाल रहे हैं।

व्यक्ति-पूजा ही तो मानव के आध्यात्मिक रोगों का एक मुख्य

कारण है।

यह घटना महात्माजी ने पण्डितजी के जीवन-चरित्र में दी है

या नहीं, यह मुझे स्मरण नहीं। इतना ध्यान है कि हमने पण्डित

लेखरामजी पर लिखी अपनी दोनों पुस्तकों में दी है।

यह घटना प्रसिद्ध कहानीकार सुदर्शनजी ने महात्माजी

के व्याख्यानों  के संग्रह ‘पुष्प-वर्षा’ में दी है।

 

पं. पद्मसिंह शर्मा जी की दृष्टि में पं. लेखराम साहित्यः- प्रा लेखराम

आर्यसमाजी पत्रों के लेखकों का एक प्रिय विषय है ‘हिन्दी भाषा और आर्यसमाज परन्तु भूलचूक से भी कभी किसी ने यह नहीं लिखा कि आर्य विचारक, दार्शनिक, समीक्षक, पं. पद्मसिंह जी शर्मा सपादक परोपकारी के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें हिन्दी का सर्वोच्च पुरस्कार मंगलाप्रसाद सबसे पहले दिया गया। आप साहित्य समेलन प्रयाग के प्रधान पद को भी सुशोभित करने का गौरव प्राप्त कर पाये। जब ‘कुल्लियाते आर्य मुसाफिर’ के नये संस्करण को सपादित करने का गौरवपूर्ण दायित्व आर्यसमाज के मनीषियों ने मुझे सौंपा तो पं. लेखराम जी विषयक असंय लेख व अनगिनत पुस्तकें मेरे मस्तिष्क में घूमने लगीं।

मन में आया कि आचार्य उदयवीर जी तथा मुंशी प्रेमचन्द जी सरीखे विद्वानों व साहित्यकारों के निर्माता पं. पद्मसिंह जी शर्मा की पं. लेखराम के पाण्डित्य तथा साहित्य पर पठनीय गभीर टिप्पणी आर्य जनता की सेवा में रखी जाये। पं. शान्तिप्रकाश जी, पं. देवप्रकाश जी, ठाकुर अमरसिंह जी तथा शरर जी आदि के पश्चात् पूज्य पं. लेखराम जी के साहित्य का तलस्पर्शी ज्ञान रखने वालों का अकाल-सा पड़ गया है।

ऋषि के अन्तिम काल की चर्चा करते हुए पं. पद्मसिंह जी लिखते हैं कि इसके कुछ समय पश्चात् मिर्जा गुलाम अहमद ने हिन्दू धर्म पर और विशेष रूप से आर्यसमाज पर नये सिरे से आक्रमण करने आरभ किये। कादियानी मियाँ के आक्रमणों का समुचित उत्तर श्रीमान् पं. लेखराम जी ने दिया और ऐसा दिया कि बायद व शायद (जैसा देना चाहिये था- अनूठे ढंग से)।

फिर लिखा है, ‘‘पं. लेखराम जी के पश्चात् इस शान की, इस कोटि की यह एक ही पुस्तक (चौदहवीं का चाँद) निकली है, जिस पर अत्यन्त गौरव किया जा सकता है।’’

यह भी क्या अनर्थ है कि आर्यसमाज के बेजोड़ साहित्यकार का अवमूल्यन करने के लिए कुछ तत्त्व समाज में घुस गये हैं। उनके ऋषि जीवन को तो ‘विवरणों का पुलिंदा’ घोषित कर अपमानित किया और सहस्रों जनों को धर्मच्युत होने से बचाने वाले उनके साहित्य को अपने पोथी-पोथों से कहीं निचले स्तर का….। अधिक क्या लिखें।

परोपकारी के ऐसे-ऐसे कृपालु पाठकः- ‘परोपकारी’ पाक्षिक की प्रसार संया कभी कुछ सौ तक सीमित थी। आज देश के प्रत्येक भाग के यशस्वी समाजसेवी, जाति रक्षक, विचारक, वैज्ञानिक, गवेषक (अन्य-अन्य मतावलबी भी) सैंकड़ों की संया में परोपकारी के नये अंक की प्रतिक्षा में पोस्टमैन की राह में पलके बिछाये रहते हैं। इसके लिए सपादक जी तथा सभा का अधिकारी वर्ग बधाई का पात्र है। आचार्य धर्मेन्द्र जी, देश के गौरव युवा वैज्ञानिक डॉ. बाबूराव जी, डॉ. हरिश्चन्द्र जी, देश के वयोवृद्ध ज्ञानवृद्ध आयुर्वेद के उपासक, उन्नायक व रक्षक 92 वर्षीय डॉ. स.ल. वसन्त जी तो इस आयु में केवल गायत्री जप, उपासना व वेद का स्वाध्याय करते हैं। आप सोमदेव जी, धर्मवीर जी, स्वामी विष्वङ् जी तथा इस सेवक को पत्र लिखते ही रहते हैं। आपने अभी-अभी एक पत्र में लिखा है, ‘‘परोपकारी में आपके स्थायी स्तभ ‘कुछ तड़प-कुछ झड़प’ पढ़े बिना आनन्द नहीं आता।’’

पाठकों को बता दें कि डॉ. वसन्त जी गुजरात, म.प्र., राजस्थान, हरियाणा में ऊँचे पदों पर रहकर आयुर्वेद की सेवा कर चुके हैं। आप यशस्वी आर्य नेता, आर्य सपादक, तपस्वी स्वाधीनता सेनानी लाला सुनामराय जी के दामाद हैं। परोपकारी को ऐसा संरक्षक मिला है। यह बहुत गौरव का विषय है।

ऋषि ने तब क्या कहा था?ः- ईसाइयों, मुसलमानों से शास्त्रार्थ के लिए हिन्दुओं ने आमन्त्रित किया था। आत्म रक्षा के लिए तब हिन्दुओं को ऋषि की शरण लेनी पड़ी थी। मुसलमानों ने ऋषि के सामने प्रस्ताव रखा कि हम और आप दोनों मिलकर गोरे पादरियों से टक्कर लें। परस्पर की बातचीत फिर हो जायेगी, पहले इनको हराया जाये। महर्षि ने कहा कि सत्य न स्वदेशी है न विदेशी होता है। हम सत्यासत्य के निर्णय के लिए यहाँ शास्त्रार्थ करने आये हैं, हार-जीत के लिए नहीं।

पाखण्ड कहीं भी हो, पाखण्ड अंधविश्वास कोई भी व्यक्ति फैलावे उसका खण्डन करना आर्यत्व है। आर्यसमाज पर बाहर वाले प्रहार करें तो ‘तड़प-झड़प’ परमोपयोगी है और कोई नामधारी आर्यसमाजी वैदिक सिद्धान्त विरुद्ध कुछ लिखे व कहे तो उसे कुछ न कहो। इससे आर्यसमाज के उस व्यक्ति की अपकीर्ति होती है। यह क्या दोहरा मापदण्ड नहीं है? आर्यसमाज के अपयश व हानि की तो चिन्ता नहीं। अमुक व्यक्ति गुरुकुल का पढ़ा हुआ है। कोई बात नहीं शिवजी की बूटी आदि का पान करने का समर्थक है। यह क्या वैदिक धर्म प्रचार है? ऋषि दयानन्द सिद्धान्तों का बट्टा-सट्टा अदला-बदली नहीं जानते थे।

– वेद सदन, अबोहर, पंजाब-152116

रक्त्साक्षी पंडित लेखराम ने क्या किया ? क्या दिया ? राजेन्द्र जिज्ञासु

Pt Lekhram

मूलराज के पश्चात् पंडित लेखराम आर्य जाति के ऐसे पहले महापुरुष थे जिन्हें धर्म की बलिवेदी पर इस्लामी तलवार कटार के कारण शीश चढाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ . वे आर्य जाति के एक ऐसे सपूत थे जो धर्म प्रचार व जाती रक्षा के लिए प्रतिक्षण सर तली पर धरकर प्रतिपल तत्पर रहते थे . उन्हीं के लिए कुंवर सुखलाल जी ने यह लिखा था :

हथेली पे सर जो लिए फिर रहा हो

वे सर उसका धड से जुदा क्या करेंगे

पंडित लेखराम ने लेखनी व वाणी से प्रचार तो किया ही, आपने एक इतिहास रचा . आपको आर्यसमाज तथा भारतीय पुनर्जागरण के इतिहास में नई -२ परम्पराओं का जनक होने का गौरव प्राप्त हुआ . श्री पंडित रामचन्द्र जी देहलवी के शब्दों उनका नाम नामी आर्योपदेशकों के लिए एक गौरवपूर्ण उपाधि बन गया . वे आर्य पथिक अथवा आर्यामुसाफिर बने तो उनके इतिहास व बलिदान से अनुप्राणित होकर आर्यसमाज के अनेक दिलजले आर्य मुसाफिर पैदा हो गए . किस किस का नाम लिया जाए . मुसाफिर विद्यालय पंडित भोजदत्त से लेकर ठाकुर अमरसिंह कुंवर सुखलाल डॉक्टर लक्ष्मीदत्त पंडित रामचंद्र अजमेर जैसे अनेक आर्यमुसाफिर उत्पन्न किये.

धर्म पर जब जब वार हुआ पंडित लेखराम प्रतिकार के लिए आगे निकले . विरोधियों के हर लेख का उत्तर दिया . उनके साहित्य को पढ़कर असंख्य जन उस युग में व बाद में भी धर्मच्युत होने से बचे. श्री महात्मा विष्णुदास जी लताला वाले पंडित लेखराम का साहित्य पढ़कर पक्के वैदिक धर्मी बने . आप ही की कृपा से स्वामी स्वतान्त्रतानंद जी महाराज के रूप में नवरत्न आर्य समाज को दिया .

 

बक्षी रामरत्न तथा देवीचंद जी आप को पढ़ सुनकर आर्यसमाज के रंग में रंगे  गए. सियालकोट छावनी में दो सिख युवक विधर्मी बनने लगे . वे मुसलमानी साहित्य पढकर  सिखमत  को छोड़ने का निश्चय कर चुके थे . सिखों की शिरोमणि संस्था सिख सभा की विनती पर एक विशेष व्यक्ति को महात्मा मुंशी राम जी के पास भेजा गया की शीघ्र आप सिविल सर्जन पंडित लेखराम को सियालकोट भेजें . जाती के दो लाल बचाने  का प्रश्न है . पंडित लेखराम महात्मा जी का तार पाकर सियालकोट आये . सियालकोट के हिन्दू सिखों की भारी भीड़ समाज मंदिर में उन्हें सुनने  को उमड़ पड़ी . टिल धरने को भी वहां स्थान नहीं था .

दोनों युवकों को धर्म पर दृढ कर दिया गया . इनमें एक श्री सुन्दरसिंह ने आजीवन आर्यसमाज की सेवा की . सेना छोड़कर वह समाज सेवा के लिए समर्पित हो गया .

मिर्जा काद्यानी ने सत्बचन ( सिखमत  खण्डन ) पुस्तक लिखकर सिखों में रोष व निराशा उत्पन्न कर दी . उत्तर कौन दे ? सिखों ने पंडित जी की और से रक्षा करने के लिए निहारा . धर्मवीर लेखराम ने जालंधर में मुनादी करवा कर गुरु नानक जी के विषय में भारी सभा की . जालंधर छावनी के अनेक सिख जवान उनको सुनने के लिए आये . पंडित जी ने प्रमाणों की झडी  लगाकर मिर्जा की भ्रामक व विषैली पुस्तक का जो उत्तर दिया तो श्रोता वाह ! वाह ! कर उठे ! व्याख्यान की समाप्ति पर पंडित लेखराम जी को कन्धों पर उठाने की स्पर्धा आरम्भ हो गयी. मल्लयुद्ध के विजेता को अखाड़े में कन्धों पर उठाकर जैसे पहलवान घूमते  हैं वैसे ही पंडित जो उठाया गया .

 

जाती के लाल बचाने के लिए वे चावापायल में चलती गाडी से कूद पड़े. जवान भाई घर पर मर गया . वह सूचना पाकर घर न जाकर दीनानगर से मुरादाबाद मुंशी इन्द्रमणि जी के एक भांजे को इसाई मत से वापिस लाने पहुँच गए . मौलाना अब्दुल अजीज उस युग के एक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर थे . इससे बड़ा पद कोई भारतीय पा ही नहीं सकता था . पंडित लेखराम का साहित्य पड़कर अरबी भाषा का इसलाम का मर्मग्य यह मौलाना पंजाब से अजमेर पहुंचा और परोपकारिणी सभा से शुद्ध करने की प्रार्थना की .”देश हितैषी “ अजमेर में छपा यह समाचार मेरे पास है . यह ऋषी जी के बलिदान के पश्चात् सबसे बड़ी शुद्धी थी .

स्वयं पंडित लेखराम ने इसकी चर्चा की है .यह भी बता दूँ की इसरो के महान भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर सतीश धवन मौलाना के सगे सम्बन्धियों में से थे . आपको लाला हरजसराय नाम दिया गया . इन्हें सभा ने लाहौर में शुद्ध किया . तब आर्यसमाज का कडा विरोध किया गया . अमृतसर के कुछ हिन्दुओं ने आर्य समाज का साथ भी दिया था . स्वामी दर्शनानंद तब पंडित लेखराम की सेना में थे तो उनके पिता पंडित रामप्रताप पोपमंडल  के साथ शुद्धि का विरोध कर रहे थे . आज घर वापस की रट  लगाने वाले शुद्धि के कर्णधार का नाम लेते घबराते व कतराते हैं  . क्या वे बता सकते हैं की स्वामी विवेकानन्द जी ने किस किस की घर वापसी करवाई . कांग्रेस का तो आदि काल का बंगाली ब्राहमण बनर्जी ही इसाई बन चूका था.

मौलाना अब्दुल्ला मेमार ने पंडित लेखराम जी के लिए “गौरव गिरि “ विशेषण का प्रयोग किया है . केवल एक ही गैर मुसलमान के लिए यह विशेषण अब तक प्रयुक्त हो हुआ है . यह है प्राणवीर पंडित लेखराम का इतिहास में स्थान व सम्मान .

सिखों की एक “सिख सभा “ नाम की पत्रिका निकाली गयी . इसका सम्पादक पंडित लेखराम जी का दीवाना था . पंडित लेखराम जी का भक्त व प्रशंषक था . उसका कुछ दुर्लभ साहित्य में खोज पाया . पंडित लेखराम जी जब धर्म रक्षा के लिए मिर्जा गुलाम अहमद की चुनौती स्वीकार कर उसका दुष्प्रचार रोकने कादियान पहुंचे तो मिर्जा घर से निकला ही नहीं

आप उसके इल्हामी कोठे पर साथियों सहित पहुँच गए . मिर्जा चमत्कार दिखाने की डींगे मारा करता था . पंडित जी ने कहा कुरआन में तो “खारिक आदात “ शब्द ही नहीं . उसने कहा _ है “ पंडित जी ने अपने झोले में से कुरान निकाल कर कहा  “ दिखाओ कहाँ है ?”

वहां यह शब्द हो तो वह दिखाए . मौलवियों ने इस पर मिर्जा को फटकार लगाईं हिया . पंडित जी ने अपनी ताली पर “ओम “ शब्द लिखकर मुट्ठी बंदकर के कहा “ खुदा से पूछकर  बताओ मैने क्या लिखा है ?. सिख सभा के सम्पादक ने लिखा है कि  मिर्जा की बोलती बंद  हो गयी , वह नहीं बता सका कि  पंडित जी ने अपनी तली पर क्या लिखा हिया . अल्लाह ने कोई सहायता न की . पंडित लेखराम जी के तर्क व प्रमाण दे कर देहलवी के प्रधान मंत्री राजा सर किशन प्रसाद को मुसलमान बनने  से बचाया था .

वेद सदन अबोहर पंजाब